काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?
काशी में पुरानी परंपराएँ लुप्त हो रही हैं। संगीत साहित्य और अदब की वे सारी परंपराएँ लुप्त होती जा रही थीं जो खाँ साहब के लिए महत्वपूर्ण थीं। खान-पान संबंधी पुरानी चीज़ें न मिलना जो कि बिस्मिल्ला खाँ की पसंदीदा मलाई बर्फी काशी पक्का महाल से लुप्त हो गई थी। इसके साथ साथ पहले जैसी देशी घी की कचौड़ी तथा जलेबी भी लुप्त हो गई थी। गायक द्वारा रियाज करने में कमी आना। गायकों के मन में संगीतकारों के प्रति समाप्त होता हुआ सम्मान खाँ साहब को व्यथित कर रहा था। बिस्मिल्ला खाँ अपने व्यथित ह्रदय से कहते हैं कि घंटों रियाज को अब कौन पूछता है। कजली, चैती और अदब का जमाना नहीं रहा। इस प्रकार काशी में हो रहे परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे।